प्रभु का देवानंद पण्डित काे अपराध बताना
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चैतन्य जीवनामृत
- प्रेमावतार श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु
- कब और कैसे ठाकुरजी का विरह हजार गुना बढ़ जाता है?
- श्रीकृष्ण ने राधारानी जी से उनके महाभाव की याचना क्यों की ?
- महाप्रभु का प्रथम कृपापात्र
- महाप्रभु के बाल रुप में चतुर्भुज भगवान के दर्शन
- गौरांग महापृभु के मुख्य पार्षद श्री अद्वैताचार्य
- निमाई की चंचलता
- भगवत भक्ति परायण अद्वैताचार्य जी
- श्री अद्वैताचार्य की प्रार्थना पर प्रकटे श्री गौरांग
- विश्वरूप जी का वैराग्य
- विश्वरूप जी का गृह त्याग
- निमाई का अध्ययन के लिए आग्रह
- निमाई का यज्ञोपवीत संस्कार
- पिता का परलोक गमन
- निमाई की विलक्षण बुद्धि
- श्री महाप्रभु जी का त्याग
- श्री चैतन्य महाप्रभु का विवाह
- चंचल पंडित निमाई
- चंचल पंडित निमाई 2
- नवदीप में ईश्वरपुरी - पार्ट 1
- नवद्वीप में ईश्वरपुरी पार्ट-2
- पूर्व बंगाल की यात्रा पार्ट-1
- जब महाप्रभु ने जीवन का मूलमंत्र बताया
- पत्नी-वियोग और प्रत्यागमन
- नवद्वीप में दिग्विजयी पंडित
- दिग्विजयी का पराभव 1
- दिग्विजयी का पराभव 2
- दिग्विजयी का पराभव 3
- विषयों का तो आनंद तो वैराग्य का मैल मात्र ही है
- मनुष्य मात्र का कर्तव्य क्या है ?
- सर्वप्रिय निमाई
- पंडित श्रीवास जी और निमाई
- श्रीविष्णुप्रिया जी परिणय
- श्री विष्णु प्रिया परिणय- पार्ट 2
- श्री विष्णु प्रिया परिणय- पार्ट 3
- निमाई प्रकृति परिवर्तन
- महाप्रभु द्वारा बताई गौ ब्राह्मण की महिमा
- गया धाम की यात्रा 2
- गया धाम में श्री ईश्वर पुरी से भेंट
- बस ऐसे जीवन धारण करना सार्थक है
- निमाई पंडित को श्रीकृष्ण मन्त्र की दीक्षा
- महाप्रभु का नदिया में पुनः आगमन भावावस्था
- नदिया में महाप्रभु की भावावस्था
- महाप्रभु का वही प्रेमोन्माद
- महाप्रभु जी से विद्यार्थियों द्वारा पढ़ाने का आग्रह
- पं० गंगादास जी द्वारा महाप्रभु को समझाइश
- महाप्रभु जी की अध्यापकीय का अंत
- श्री महाप्रभु जी का अध्यापकीय का अन्त -2
- कृपा की प्रथम किरण रत्नगर्भ जी पर
- श्रीकृष्ण-प्रेम में मतवाले निमाई
- चैतन्य जीवनामृत - शचि माता का दुख
- चैतन्य जीवनामृत - अद्वैताचार्य को स्वप्न में महाप्रभु का विश्वम्भर के रूप में दर्शन
- चैतन्य महाप्रभु से अद्वैताचार्य जी का अपने वास्तविक स्वरुप में आने का आग्रह
- महाप्रभु द्वारा पार्षदों को गोपनीय रसास्वादन
- श्री वास के घर संकीर्तन
- गदाधर पर कृपालु की अहैतुकी कृपा
- शुक्लाम्बर ब्रह्मचारी पर कृपा
- कीर्तन को लेकर व्यर्थ चर्चाएं
- नदिया ग्राम में कीर्तन को लेकर लोग भयभीत
- महाप्रभु द्वारा श्री नृसिंह वेश दिखाकर श्री वास को निर्भय प्रदान करना
- भावावेश में प्रभु का श्री वास को समझाना
- महाप्रभु का श्री वाराहावेश
- मुरारी गुप्त पर महाप्रभु की कृपा
- निमाई के भाई निताई
- नित्यानंद (निताई) लीला
- सन्यासी द्वारा नित्यानन्द को माँ-बाप से भिक्षा के रूप में माँगना
- चैतन्य जीवनामृत - स्नेहाकर्षण
- निताई का भावावेश
- निताई,-निमाई की प्रेममयी वाणी
- व्यास पूजा
- व्यास पूजा भाग-2
- व्यास पूजा पार्ट-3
- व्यास पूजा के बाद महाप्रभु कीर्तन
- श्री अद्वैताचार्य के ऊपर कृपा
- अद्वैताचार्य द्वारा प्रभु की स्तुति
- अद्वैताचार्य को श्यामसुंदर स्वरूप के दर्शन
- अद्वैताचार्य को इष्ट के दर्शन
- अद्वैताचार्य ,श्री वास एवं महाप्रभु के बीच ठिठोली
- भावावेश में प्रभु का पुण्डरीक स्मरण
- प्रच्छन्न भक्त पुण्डरीक विद्यानिधि
- पुण्डरीक का भावावेश
- पुण्डरीक का महाप्रभु मिलन तथा गदाधर को मन्त्र दीक्षा
- निमाई और निताई की प्रेम लीला
- निमाई प्रभु का निताई को भोजन-आमंत्रण
- द्विविध भाव
- महाप्रभु भावावेश लक्षण
- भक्त हरिदास जी
- विगलित-नयन-कमल-जलधारं
- हरिदास जी द्वारा वारांगना उद्धार
- हरिदास जी के प्रति ईर्ष्या
- हरिदास जी की नाम निष्ठा
- हरिदास जी की सहृदयता
- श्री चैतन्य महाप्रभु की कृपा प्राप्त करने का उपाय
- श्री नित्यानंद त्रयोदशी प्रभु के आविर्भाव दिवस विशेष
- हरिदास जी की श्रद्धा भक्ति
- हरिदास जी द्वारा नाम माहात्म्य
- हरिदास जी द्वारा नाम माहात्म्य2
- हरिदास जी की दूसरी घटना
- श्री वास के घर भक्तों का एकत्र होना
- भावावेश में भक्तों द्वारा प्रभु की सेवा
- प्रभु को व्यंजन अर्पित
- चैतन्य जीवनामृत - भक्तों को भगवान् के दर्शन
- भक्त श्रीधर को महाप्रभु के दिव्य दर्शन
- मुरारी गुप्त को महाप्रभु के दिव्य दर्शन
- मुकुंददत्त पर प्रभु की कृपा
- भगवद्भाव की समाप्ति
- प्रेमोन्मत्त अवधूत नित्यानंद जी
- अवधूत नित्यानंद जी की प्रेमावस्था
- प्रेमोन्मत्त अवधूत का पादोदकपान
- घर घर में हरिनाम का प्रचार
- नित्यानंद जी और हरिदास के प्रचार का प्रभाव
- भक्तों द्वारा महाप्रभु जी से जगाई मधाई उद्धार की विनय
- नित्यानंद जी की दयालुता
- नित्यानंद और हरिदास जी की नोक झोंक
- हरिदास जी, नित्यानंद जी के मुख से नगर प्रचार का वृतांत सुनाना
- जगाई मधाई के उद्धार का निकट समय
- भक्तों द्वारा महाप्रभु जी से जगाई मधाई उद्धार की विनय
- महाप्रभु जी का जगाई मधाई पर क्रोध
- नित्यानंद जी की महाप्रभु से जगाई मधाई उद्धार के लिए विनय
- जगाई मधाई की नित्यानंद जी से विनती
- जगाई मधाई की प्रभु के चरणों में विनती
- जगाई मधाई का उद्धार
- जगाई मधाई का पश्चाताप
- मधाई की नित्यानंद जी से प्रार्थना
- सज्जन भाव
- महाप्रभु की सरलता
- महाप्रभु का सुन्दर व्यवहार
- श्री वास पण्डित के घर प्रभु का भावावेश
- श्री कृष्ण लीलाभिनय
- श्री कृष्ण लीला आरम्भ
- श्रीकृष्ण लीला आरम्भ 2
- श्रीकृष्ण लीला आरम्भ 2
- महाप्रभु भुवनमोहिनी लक्ष्मी देवी वेष में
- श्री महाप्रभु का भुवनमोहिनी रूप
- संकीर्तन का महत्व और गरुड़ लीला
- मुरारी गुप्त पर कृपा
- श्री महाप्रभु जी और नित्यानंद जी का अद्वैताचार्य के घर आगमन
- श्री महाप्रभु जी भक्तों के घर जाना
- भगवत् भजन में बाधक भाव
- शचीमाता द्वारा नामापराध
- वैष्णव अपराध
- प्रभु का देवानंद पण्डित काे अपराध बताना
- महाप्रभु जी द्वारा हरिनाम की शिक्षा
- महाप्रभु जी द्वारा हरिनाम की शिक्षा
- नदिया में प्रेम प्रवाह
- प्रभु के प्रभाव से लोगों में द्वेष
- काजी का अत्याचार
- काजी का अत्याचार
- नगर कीर्तन के लिए प्रोत्साहन
- नगर कीर्तन की तैयारियाँ
- श्री महाप्रभु जी का नगर कीर्तन के समय अद्भुत रूप
- नृत्य, के साथ नगर संकीर्तन
- नगर कीर्तन में प्रभु का स्वागत
- नगर कीर्तन सहित महाप्रभु जी काजी के घर
- काजी और श्रीधर पर कृपा
- महाप्रभु लीला
- श्री वास पण्डित के घर प्रभु का कीर्तन
- कीर्तन के समय श्री वास के पुत्र का शरीर त्याग
- श्री वास पण्डित के पुत्र से प्रभु की बात
- शरणापन्न भक्तों को ही दिव्य स्वरूप के दर्शन
- विजय आख़रिया और ब्रह्मचारी जी पर कृपा
- प्रभु का नवानुराग और गोपी भाव
- गोपी भाव में विभोर
- कुछ लोगों से महाप्रभु का बढता यश असहनीय
- सन्यास से पूर्व
- भक्त वृन्द और गौर हरि सन्यास से पहले
- सन्यास से पहले दुखी नित्यानंद जी और मुकुंद का समझाना
- गदाधर को सन्यास के लिए समझाना
- प्रभु का मुरारी गुप्त तथा भक्तों को समझाना
- शचीमाता और गौरहरि, सन्यास से पूर्व
- सन्यास को लेकर गौर हरि का माता को समझाना
- विष्णु प्रिया और गौरहरि
- विष्णुप्रिया जी को सन्यास से पहले समझाना
- विपरीत अवस्था जीव कल्याण के लिए
- महाप्रभु का नवद्वीप में अंतिम दिन
- महाप्रभु जी का गृह त्याग
- नवद्वीप में हाहाकार
- गौरहरि का सन्यास के लिए आग्रह
- गौरहरि को स्त्री पुरूषों द्वारा समझाना
- श्री कृष्ण भक्ति बडी दुर्लभ, महापुरूषों की संगति उससे भी दुर्लभ
- भारती जी सन्यास के लिए राजी
- इन्हें धर्म तत्व कोई समझा ही नहीं सकता
- इन्हें धर्म तत्व कोई समझा ही नहीं सकता
- नापित का इनकार - मुझसे ये निर्दय काम कभी न होगा
- नापित हरिदास की अहैतु की भक्ति
- मर्यादा की रक्षा के लिए सन्यास
- प्रभु का संन्यास के बाद नाम श्री कृष्ण चैतन्य
- अश्रु विमोचन करते हुए जब भारती जी प्रभु के पैरो में पडे
- प्रभु के साथ ही सब चल पड़े
- प्रभु का अद्वैताचार्य के पास जाने का विचार
- चन्द्रशेखर आचार्य प्रभु के वियोग में दुखी होकर रोना
- माता द्वारा आचार्य से दुखी होकर महाप्रभु के बारे में पूछना
- सभी को सन्यासी महाप्रभु के दर्शन की खबर सुनकर अश्रुपात
- नित्यानंद द्वारा माता को आश्वासन प्रभु से मिलाने का
- प्रभो आप तो चराचर जीवों के पिता हैं
- जगन्नाथ में तो इतने पदार्थ खा लेते हैं
- आचार्य और नित्यानंद जी में विनोद की बातें
- भक्तों को तथा माता को सन्यासी पुत्र का मिलन
- श्री अद्वैताचार्य और महाप्रभु का भावावेश नृत्य
- मैं अब जगन्नाथ पुरी निवास करूँगा- महाप्रभु
- प्रभु के साथ चार भक्तों के जाने की तैयारी
- महाप्रभु का जगन्नाथ पुरी की ओर प्रस्थान
- प्रभु ने सभी के त्याग वैराग्य की परीक्षा ली
- प्रभु द्वारा भक्तों को अम्बुलिंग शिवलिंग के बारे में बताना
- प्रभु का नौका (नाव) में संकीर्तन
- प्रभु ने कहा हम तो अकेले ही हैं
- नित्यानंद जी द्वारा महाप्रभु जी का दण्ड भंग
- प्रभु का नित्यानंद जी के प्रति स्नेह प्रदर्शन
- इन्होंने तो ऐसे प्याले को पी लिया है
- गोपाल जी के खीर चोरी करने का क्या कारण था
- जब भगवान् ने दूध पिलाया माधवेंद्र पुरी को
- श्री गोपाल जी के प्राकट्योत्सव पर अन्नकूट उत्सव
- जब खीर की चोरी की भगवान् ने पुरी जी के लिए
- प्रतिष्ठा को शूकरीविष्ठा और गौरव को रौरव नरक के समान
- पुरी महाराज की अलौकिक श्रद्धा
- साक्षी गोपाल का प्रकट होना
- वृद्ध ने गोपाल को गवाह बना लिया
- गोपाल जी का युवक के साथ गवाही के लिए आगमन
- साक्षीगोपाल और जगन्नाथ जी में प्रेम कलह
- श्री भुवनेश्वर महादेव बिन्दुसर तीर्थ
- शिवजी ने दे डाला अनोखा वरदान
- शिवजी आप तो साक्षात् मेरे स्वरूप ही है
- श्री जगन्नाथ के दर्शन से प्रभु को मूर्छा
- प्रभु की इसी दशा में सार्वभौम अपने घर ले गये
- सभी साथी सार्वभौम के घर
- प्रभु का सार्वभौम को अपना बनाने की शुरुआत
- प्रभु का अपने स्वरूप को छिपाना
- गुरू का महत्व
- मैं प्रतिज्ञा करता हूँ प्रभु ईश्वर हैं, ईश्वर हैं
- आचार्य सार्वभौम से नाराज होकर महाप्रभु जी के पास गये
- आचार्य सार्वभौम से नाराज होकर महाप्रभु जी के पास गये
- आचार्य सार्वभौम से नाराज होकर महाप्रभु जी के पास गये
- आचार्य सार्वभौम से नाराज होकर महाप्रभु जी के पास गये
- सार्वभौम का निमंत्रण महाप्रभु जी के लिए
- प्रभु ने कई प्रकार से व्याख्या कर डाली
- सार्वभौम प्रभु के भक्त बन गये
- सार्वभौम की प्रभु में श्रद्धा
- दक्षिण यात्रा का विचार
- कृष्ण दास को साथ चलने की अनुमति
- दक्षिण यात्रा के लिए प्रस्थान
- ब्राह्मण पर कृपा
- वासुदेव कुष्ठी का उद्धार
- राय रामानंद की निगाह महाप्रभु जी पर पडी
- इस दीन हीन भक्ति विहीन शूद्राधम को ही रामानंद कहते हैं
- राय रामानंद द्वारा साध्य तत्व प्रकाश
- राय रामानंद के द्वारा कृष्ण भक्ति पर प्रकाश
- भगवान के साथ संबंध
- भला, श्री राधिका जी के प्रेम की प्रशंसा कर ही कौन सकता है
- सर्वश्रेष्ठ संपत्तिशाली पुरूष कौन है?
- राय रामानंद को महाप्रभु में राधाकृष्ण का दर्शन
- दक्षिण यात्रा के समय एक अनोखे भक्त से प्रभु की भेंट
- धनी तीर्थराम को प्रेम दान और वेश्याओं का उद्धार
- महाप्रभु की तीर्थराम पर कृपा
- प्रभो इस पापिनी का उद्धार कीजिए
- महाप्रभु की एक ऐसे ब्राह्मण से भेंट जो केवल हर घडी रूपध्यान ही करता थ
- इतना सुनते ही प्रभु प्रेम में विभोर हो गये
- घर पर तो वे ही श्री हरि हैं
- तुम कहां हो, नाथ ! दर्शन दो प्राण बल्लभ
- नौरोजी डाकू का उद्धार
- नौराेजी डाकू का सुधार
- प्रभु के चरणों में सभी भक्त गिर पडे
- मनुष्य का मुख्य कर्तव्य यही है
- स्वरूप दामोदर जी का महाप्रभु जी के प्रति प्रेम
- इनके जैसा सच्चा सेवक त्रिलोकी में बहुत ही दुर्लभ है
- मुझ जैसे अधर्मी का उद्धार कैसे होगा
- त्यागी पुरूष को स्त्रियों की और विषयी पुरूषों की आकृति से भी डरना चाहिए
- प्रभु अपने प्यारे के दर्शन न होने से बहुत दुखी हुए।
- आप ठीक कहते हैं प्रेम में नेम नहीं होता
- सभी भक्त प्रेम में पागल बने हुए थे
- ये महाभागवत कौन हैं ?
- महाप्रभु जी के साथ भक्तों की भेंट
- महाप्रभु जी ने जल्दी से हरिदास जी को गले लगा लिया
- महाप्रभु जी को आज कीर्तन में बहुत ही अधिक आनंद आया
- राजदर्शन से लोक परलोक दोनों की ही हानि होती है
- इन हाथों से प्रभु की तुच्छ से तुच्छ सेवा का भी सौभाग्य प्राप्त हो सके।
- इस पर भक्त को बडी प्रसन्नता हुई
- गोविंद की मूर्छा भंग ही नहीं होती थी
- श्री जगन्नाथ जी की रथ यात्रा
- महाप्रभु जी रथ के आगे नृत्य करते हुए चल रहे हैं
- महाप्रभु का ऐसा अद्भुत नृत्य किसी ने आज तक नहीं देखा था
- प्रभु की आँखों से अश्रुओं की धारा बहने लगी
- श्री वास पण्डित ने राजमन्त्री के एक झापड़ जड दिया
- महाप्रभु के भावों को केवल स्वरूप दामोदर ही समझ सके
- महाराज ने अपने राजसी वस्त्र उतार दिए
- महाराज प्रतापरूद्र को प्रेमदान
- हेरापँचमी का उत्सव
- महाप्रभु के साथ रोज सभी को आनन्द होता
- धन का सर्वोत्तम उपयोग भगवान् की सेवा पूजा में व्यय हो
- प्रभो यथार्थ में पिता तो रघुनंदन ही हैं
- भक्तों की विदाई
- यह तो जन्म से ही भक्त हैं
- सार्वभौम के घर भिक्षा
- महाप्रभु का निंदक के प्रति भी दया का भाव
- महाप्रभु जी द्वारा अमोघ का उद्धार
- नित्यानंद जी का गौड देश में भगवन्नाम वितरण
- नित्यानंद जी का प्रभाव बहुत अधिक बढ गया
- नित्यानंद जी के रहन-सहन की खूब आलोचना होने लगी
- महापुरूषों के कार्यो की आलोचना और निन्दा पाप
- नित्यानंद जी एक बाग में बैठे आँसू बहा रहे थे
- नित्यानंद जी का गृहस्थाश्रम में प्रवेश
- भगवद् भक्त के लिए सभी उसके इष्टदेव के स्वरूप हैं
- महाप्रभु की ख्याति दूर दूर तक फैल गई
- प्रभु ने श्री पाद प्रकाशानन्द जी के पाण्डित्य की प्रशंसा की
- महाप्रभु को सांसारिक प्रतिष्ठा के कार्य पसन्द नहीं थे
- महाप्रभु को सांसारिक प्रतिष्ठा के कार्य पसन्द नहीं थे
- दूसरे वर्ष सब भक्त नीलाचल आने लगे
- प्रभु के पीछे-पीछे हजारों भक्त आँसू बहाते हुए चल रहे थे
- वैष्णव, वैष्णवतर और वैष्णवतम तीन प्रकार के भक्तों का तत्व
- प्रभु के नेत्रों से निरन्तर प्रेमाश्रु निकल रहे थे
- महाप्रभु की वृन्दावन यात्रा
- वे तो मानो सौन्दर्य के अवतार ही हैं
- प्रभु ने भक्तो के साथ नाव में कीर्तन किया
- प्रेम के कारण माता कुछ कह न सकी
- पतिव्रता विष्णुप्रिया जी की विरहावस्था
- असंख्य जीव उनकी कृपा से संसार सागर से पार हो गये
- घर के सामने आकर प्रभु खड़े हो गए
- विष्णुप्रिये तुम अपने नाम को सार्थक करो
- साधु के लिए संग्रह करना दूषण है
- श्री रूप और सनातन जी
- उन्नति का श्री गणेश हो गया
- रूप, सनातन प्रभु के चरणों में गिरकर जोरों से रोने लगे
- भक्त रघुनाथ
- ये जन्मसिद्ध पुरूष हैं
- पितृ गृह मेरे लिए सचमुच कारावास बना हुआ है
- प्रभु आप अपने चरणों में मुझे स्थान दीजिए
- प्रभु आप तो जहा रहे वहीँ वृन्दावन है
- श्री वृन्दावन आदि तीर्थों के दर्शन
- ब्रज में वे ही पुराने कनुआ हैं
- वे तो ब्रजवासियों के सखा हैं
- लोगों की गति तो भेडों के समान है
- मेरी प्रार्थना है प्रभु अब यहाँ से चलना चाहिए
- महाप्रभु जी प्रेम में गद्गद हो नृत्य करने लगे
- रूप, सनातन का वैराग्य
- मुझे संसारी काम जितने हैं काटने को दौड़ते हैं
- श्री चैतन्य चरण जहां भी होंगे वहीं जाकर हम उनके शरणागत होंगे
- वृन्दावन की पुनः यात्रा
- रूप की दृष्टि में महाप्रभु प्रेम के साकार स्वरूप थे
- तुम अभी तक रूपये को ही श्रेष्ठ समझते थे
- कीर्ति भी धन की तरह अनित्य और तुच्छ ही है।
- जिसके हृदय में सच्ची कृष्ण भक्ति है, उससे बढकर श्रेष्ठ कोई नहीं हो सकता
- श्री रूप-सनातन ही कहे जाते हैं
- सनातन समझ गए कि मेरा मन्त्र काम कर गया
- सनातन जी को महाप्रभु मिलन में पैर में गडने वाले कंकर पत्थर का भी ध्यान न था
- नाथ मैं आपके स्पर्श के योग्य नहीं हूँ
- प्रभु के उछिष्ठ का महत्व
- श्री रूप और सनातन का महान वैराग्य
- सनातन तुम्हारा वह कम्बल कहाँ है
- श्री सनातन को शास्त्रीय शिक्षा
- देवता और ब्रह्मा जी के सामने हमारी उम्र भुनगो के समान है
- प्रभो अनन्यता कैसे प्राप्त हो
- प्राणी मात्र का परम पुरूषार्थ श्री कृष्ण प्रेम की प्राप्ति करना है
- प्रकाशानन्द जी प्रभु से मिलने की सोचने लगे
- जो उन्हें एक बार भी देख लेता उन्हीं का हो जाता
- प्रभु आप इस दीन हीन कंगाल पर अवश्य कृपा करें
- ये ही महाप्रभु चैतन्य देव हैं
- कलियुग में हरिनाम से सुगम और कोई साधन ही नहीं
- महाप्रभु और प्रकाशानन्द जी का वार्तालाप
- भक्ति करते चलो
- महाप्रभु का भाव देखकर बहुत से तो हरि हरि कहकर नाचने लगे
- श्री प्रकाशानन्द जी का आत्मसमर्पण प्रभु को
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