बिनु संत्संग विवेक ना होई
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आध्यात्मिक रामायण
- राम मिलन की सीढी है रामचरितमानस
- राम कथा में प्रवेश का टिकिट शिव चरित्र
- संत वाणी में अश्रद्धा न रखे
- जो इन चारो में श्रद्धा नहीं रखता उसका कभी कल्याण नहीं होता
- भगवान परीक्षा से नहीं जिज्ञासा से मिलते है
- नकली भक्ति आगे आगे ही चलती है
- महापुरुषों की नक़ल नहीं, अनुसरण करो
- भूल को स्वीकार करने का सामर्थ भी होना चाहिये
- बिनु संत्संग विवेक ना होई
- गृहस्थ जीवन तप के समान है
- हम जीते कुछ और है दिखाते कुछ और है
- एक दूसरे के प्रति हो आदर और सम्मान का भाव
- जिसमे मेरा हित हो वही कीजिये
- संत के पास माया नहीं भटकती
- करहूँ सदा तिनकी रखवारी
- जब जीवन की गाडी को हो सर्विसिंग की जरुरत तो करने लगे ये तीन काम
- अयोध्या क्या है ?
- अपना दुखड़ा रोने संसार के पास नहीं संत के पास जाए
- क्यों जन्मे राम कृष्ण १२ बजे?
- भक्ति की तैयारी नहीं होती
- जब भगवान राम से हो गए रामचन्द्र
- श्री रामचन्द्र जी की बाल लीलाये
- जीवन में संघर्ष नहीं तो कुछ भी नहीं
- जो सतत रहते है वही सताते है
- पुरुषार्थ से सत्ता तो मिल जाती है सत्यनारायण नहीं मिलते
- परम धन तो केवल राम है
- संत दोगुना करके ही लौटाते है
- जब चित्त स्वंय परमात्मा में लग जाता है
- हम सीधे-सीधे परमात्मा की ओर क्यों नहीं जाते
- हमारी साधना ऐसी हो कि संत हमारी फरयाद भगवान से कर दे
- इस संसार में वो कहाँ है जो जड़ से चेतन बना दे
- संत चरणों में पाप को कहे वरना पाप भारी हो जाएगा
- जब ज्ञान रूपी भूमि पर भक्ति रूपी वर्षा होती है
- जहाँ भक्ति महारानी है वहाँ सभी सद्गुणों का वास होता है
- राम निर्माण का साँचा है राम कथा
- परिवार में हो ऐसी मर्यादा
- भक्ति के बाग की कलियाँ बड़ी कोमल होती है
- शुभ की प्यास ही श्रद्धा है
- व्यवहार व्यवस्था सबको नहीं दी जाती
- संत की वाणी से अकर्ता भगवान भी कर्ता हो जाते है
- बिनु पद चले सुने बिनु काना
- जब अहंकार टूटता है तब भक्ति आती है
- अशांति का कारण कही हम स्वयं तो नहीं है
- शास्त्र का पालन करने से ही समाज में शान्ति आएगी
- भगवान श्रीराम स्वभाव प्रधान है
- बेटी तो दो कुलों को पवित्र करती है
- राम राज्य की नीव में जनक जी की बेटियाँ चुनी गई है
- जहाँ भक्ति सदा प्रसन्न रहती है
- चरण उसी के होते है जिसका आचरण शुद्ध है
- भाव कुभाव अनख आलस हूँ
- अंतिम समय में जहाँ मति वैसी गति
- साधना के सप्त सोपान
- कार्य का उददेश्य जानना बहुत जरुरी है
- राम ज्ञान स्वरूप और सीता जी भक्ति स्वरुप है
- श्रीराम लला ठाकुर जी के रूप का अवतार है
- कही हमारे निर्मल मन में वासना की कंकड़ी ना पड़ जाए
- भक्ति के माध्यम से भगवान अंक समां जाते है
- जो परमात्मा से रुठ कर जाता है तो जगत भी रूठा ही मिलता है
- प्रशंसा की जय जयकार अच्छे अच्छो की समाधि खोल देती है
- रवि पंचक जाके नहीं
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